भारत लेनिन जगदेव प्रसाद (फ़रवरी 02, 1922 – सितम्बर 05, 1974) एक क्रन्तिकारी व्यक्तित्व थें. यह उनका व्यक्तित्व और कृतित्व ही था कि दूसरे राज्यों के आन्दोलनरत साथी उनको अपने कार्यक्रमों में बुलाते, उनसे विचार-विमर्श करतें और उनसे आवश्यक दिशा-निर्देश प्राप्त करतें थें. उनका प्रभाव पुरे उत्तर भारत में सर्वमान्य था. यह उनका क्रन्तिकारी विचारो का ही प्रभाव था कि अमेरिकी और रुसी इतिहासकार और पत्रकार उनके साक्षात्कार अपने-अपने देशो में छपा और बताया कि भारत के सवर्ण समुदाय भारत को जैसा दिखाते है और बतातें हैं वैसा नहीं है. भारत लेनिन जगदेव प्रसाद भारत को सच्चे अर्थो में सर्वहारा की दृष्टि से देखतें थें. जबकि उनका आरोप था कि मार्क्सवाद में कोई समस्या नहीं है बल्कि समस्या भारतीय मार्क्सवाद में है जिसकी जड़े सवर्णवाद और ब्रह्मंवाद में है क्योकि, उन्हीं लोगो ने इसपर अपना कब्ज़ा जमा लिया है.
भारत लेनिन जगदेव प्रसाद के बढ़ाते प्रभावों को देखते हुए यह सहज ही कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं था जब पुरे भारत में उनका प्रभाव होता.
शहीद जगदेव प्रसाद शहादत दिवस Shahid Jagdev Prasad's Shahadat Divas, Celebration in JNU, New Delhi (https://www.youtube.com/watch?v=qtPE_BaDGJU)
शोषित वंचित पिछड़े और बेसहारो की वो प्रमुख आवाज थें. यही कारण है कि शोषक जाति के रूप में भूमिहारो ने उनकी हत्या उस समय कर दी जब वो भाषण दे रहें थें.
भारत लेनिन जगदेव प्रसाद भारत के पहले जननायक थें जिनकी हत्या उस समय हुई जब वो भाषण दे रहें थें. भारत में भाषण देते समय दूसरी हत्या चंद्रशेखर उर्भ चंदू की हुई थी. चंद्रशेखर उर्फ चंदू जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थें. इनकी हत्या भी उन्हीं ताकतों ने की थी जिसने जगदेव प्रसाद की की थी. यह महज संयोग नहीं है कि दोनों ही एक ही समुदाय से आतें हैं. बल्कि सच यह है कि इस समुदाय और समाज ने सामाजिक न्याय के लिए अपनी अनेको कुर्बानियां दी है.
भारत लेनिन जगदेव का व्यक्तित्व बहुत विशाल था, उनके बारे में एक लेख में सब कुछ कहना असंभव है. एक मोटी ग्रंथ लिखना पड़ेगा और हो सकता है वह भी कम पड़ जाए. इसलिए इस लेख में मैं शिक्षा पर उनके विचारो के एक अंश पर विचार कर उसे उद्धृत करना चाहूँगा.
शिक्षा पर उनका विचार, सबकी भागीदारी पर था. उनका कहना था शिक्षा पर सबको बराबर का अधिकार है. चाहे वह स्टूडेंट्स के रूप में हो या शिक्षक के रूप में. उनका सपना शिक्षा को सर्वव्यापिकरन और लोक्तान्त्रिकीकरण करना था.
यह अकारण नहीं था कि जब राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले स्कूल पढ़ाने जाती थी तब द्विज/ सवर्ण समाज उनपर गोबर और कीचड़ फेकता था. यह अकारण नहीं है कि जब अंग्रेजो ने शिक्षा का सार्वभौमिक (universalisation of education) करने की कोशिश की तब द्विज/ सवर्ण समाज उसका विरोध किया. (इस विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए पढ़े - Foundations of Tilak’s Nationalism Discrimination. Education and Hindutva, by Prof. Parimala V. Rao, Orient BlakSwan, 2010). भारत में आज भी शिक्षा का सार्वभौमिक करने का प्रयास अंग्रेजो (असल में यूरोप और अमेरिका) के सहयोग से ही चल रहा है.
आधुनिक भारत के निर्माता डा. आंबेडकर ने कहा था “भारत एक राष्ट्र नहीं है राष्ट्र बनने की और अग्रसर है”. उनके इस कथन को आज भी सच देखते हुए मुझे ख़ुशी नहीं हुई. बेहतर होता कि उनका यह कथन उनके जीवन काल में ही अप्रासंगिक और झूठा हो जाता.
भारत लेनिन जगदेव प्रसाद भारत के पहले जननायक थें जिनकी हत्या उस समय हुई जब वो भाषण दे रहें थें. भारत में भाषण देते समय दूसरी हत्या चंद्रशेखर उर्भ चंदू की हुई थी. चंद्रशेखर उर्फ चंदू जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थें. इनकी हत्या भी उन्हीं ताकतों ने की थी जिसने जगदेव प्रसाद की की थी. यह महज संयोग नहीं है कि दोनों ही एक ही समुदाय से आतें हैं. बल्कि सच यह है कि इस समुदाय और समाज ने सामाजिक न्याय के लिए अपनी अनेको कुर्बानियां दी है.
भारत लेनिन जगदेव का व्यक्तित्व बहुत विशाल था, उनके बारे में एक लेख में सब कुछ कहना असंभव है. एक मोटी ग्रंथ लिखना पड़ेगा और हो सकता है वह भी कम पड़ जाए. इसलिए इस लेख में मैं शिक्षा पर उनके विचारो के एक अंश पर विचार कर उसे उद्धृत करना चाहूँगा.
शिक्षा पर उनका विचार, सबकी भागीदारी पर था. उनका कहना था शिक्षा पर सबको बराबर का अधिकार है. चाहे वह स्टूडेंट्स के रूप में हो या शिक्षक के रूप में. उनका सपना शिक्षा को सर्वव्यापिकरन और लोक्तान्त्रिकीकरण करना था.
यह अकारण नहीं था कि जब राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले स्कूल पढ़ाने जाती थी तब द्विज/ सवर्ण समाज उनपर गोबर और कीचड़ फेकता था. यह अकारण नहीं है कि जब अंग्रेजो ने शिक्षा का सार्वभौमिक (universalisation of education) करने की कोशिश की तब द्विज/ सवर्ण समाज उसका विरोध किया. (इस विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए पढ़े - Foundations of Tilak’s Nationalism Discrimination. Education and Hindutva, by Prof. Parimala V. Rao, Orient BlakSwan, 2010). भारत में आज भी शिक्षा का सार्वभौमिक करने का प्रयास अंग्रेजो (असल में यूरोप और अमेरिका) के सहयोग से ही चल रहा है.
आधुनिक भारत के निर्माता डा. आंबेडकर ने कहा था “भारत एक राष्ट्र नहीं है राष्ट्र बनने की और अग्रसर है”. उनके इस कथन को आज भी सच देखते हुए मुझे ख़ुशी नहीं हुई. बेहतर होता कि उनका यह कथन उनके जीवन काल में ही अप्रासंगिक और झूठा हो जाता.
भारत लेनिन जगदेव प्रसाद एक दूरदृष्ट्रा थे – जो वो आज से लगभग 50 साल पहले कह रहें थें, और उसपर अमल कर रहें थें उसे आजके सामाजिक न्याय के ठेकेदार ने आजतक नहीं समझ सका या करना नहीं चाहता.
शहीद जगदेव प्रसाद की शहादत दिवस दिल्ली यूनिवर्सिटी Jagdev Prasad Shahadat Diwas in DU Delhi, (https://www.youtube.com/watch?v=zG5GNbWLDYQ)
बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का कहना सही था कि भारत एक राष्ट्र न होकर कई राष्ट्र है. भारत की एक राष्ट्रीयता इसकी दूसरी राष्ट्रीयता को हेय दृष्टी से देखता है, नीची नज़रो से देखता है, उसे दुसरे दर्जे का नागरिक समझता है, या उसे नागरिक ही नहीं समझता है. उसे इन्सान ही मानने को तैयार नहीं है. जगदेव प्रसाद ने उनकी इन्हीं राष्ट्रीयता की चुनौती दी थी. जगदेव प्रसाद भारत के पहले नेता थे जिन्हें सवर्णों/ सामंतो ने भाषण देते समय गोली मार दी थी.
लेकिन मौलिक सवाल यह है कि सवर्णवादी वर्चश्व को कैसे चुनौती दिया जाए? समाज के गौतम बुद्धा, राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले, राष्ट्रमाता ज्योतिबा फुले सभी शिक्षा पर बल देतें हैं. बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी शिक्षा को सामाजिक परिवर्थान को सर्वोपरी माना है.
शिक्षा सिर्फ पढ़ने-लिखने की काबिलियत नहीं देता बल्कि वह सोचने-समझने की क्षमता भी बढ़ता है. वह समाज को नए दृष्टि से देखता है. समाज के वास्तविक समस्यायों को समझता है और उसे उसके समाधान भी सुझाता है. आज सिर्फ हमारे समाज ही नहीं बल्कि पूरा पिछड़ा-वंचित-शोषित समाज की ही असली समस्या है कि उनके पास चिन्तक की कमी है. और जो है उसे यह समाज अपने पिछड़ेपन की वजह से नहीं पहचान पाटा और इसलिए उसे तवज्जो नहीं देता. इसका मूल कारन एक ही है – शिक्षा से वंचित होना. और वंचित करने वाला इस देश का ब्राह्मण और सवर्ण समाज है.
आजादी के लगभग 70 साल के बाद भी हम इस बात की लड़ाई लड़ रहें हैं कि न सिर्फ अपने कौम के लोग बल्कि भारत के समस्त पिछड़े-वंचित-शोषित समाज के लोगो की भागीदारी नहीं है. यह भागीदारी दो स्तरों पर नहीं है. पहला स्टूडेंट्स के रूप में और दूसरा शिक्षक के रूप में. भागीदारी की कमी प्राथमिक से लेकर विश्विद्यालय स्तर तक है. भारत में मई-जून 2016 में बौद्धिक वर्गों के बीच यह चर्चा का विषय रहा कि विश्विद्यालयो के एसोसिएट और प्रोफेसर पदों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए प्रतिनिधित्व/आरक्षण नहीं है. भारत में 2006 में अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षा में अन्य पिछड़े वर्गों के स्टूडेंट्स और शिक्षक को क्रमशः एडमिशन और पद पर प्रतिनिधित्व/आरक्षण दिया. जिस चीज को सत्ताधारी जातिवादी नेता आज समझ रहें हैं उसे भारत लेनिन जगदेव प्रसाद आज लगभग 50 वर्ष पहले ही समझ रहें थें. इसी क्रम में यह बताना जरुरी है कि जवाहरलाल नेहरू विश्विद्क्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू भी शिक्षा के महत्त्व को समझते थें. इसलिए उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्क्यालय में सभी वंचित-शोषित-पिछड़े (ST SC OBC DA DNT) समाजो के प्रतिनिधत्व के लिए लड़ाई लड़ा और प्रशासन को अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर दिया. यह चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू का ही प्रयास था जिसके कारन आज जवाहरलाल नेहरू विश्विद्क्यालय पुरे दुनिया में अपनी शोध-गुणवत्ता-सामाजिक आन्दोलनों-प्रतिबद्धताओ के लिए जाना जाता है.
भारत के दोनों महान हस्ती भारत लेनिन जगदेव प्रसाद और क्रन्तिकारी चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू कहतें थें कि शिक्षा पर जातीय वर्चस्व टूटना चाहिए. समाज को बदलने के लिए शिक्षा और बौद्धिक लोकतंत्र जरुरी है. दोनों ने इसके लिए लड़ाईयाँ लड़ी कुछ हद तक जीत दर्ज किया और अंततः समाज के लिए अपनी सहादत दी.
भारत के दोनों सितारों के सहादत को हम इस संकल्प के साथ नमन करें कि हमें उनके सपनों को साकार करना है. दोनों हमारे समाज के लिए गर्व का विषय हैं तो हमारा कर्तव्य है कि उनके द्वारा जलाया गया दीया की किरण समाज में फैलाती ही जाए. हमें इस पर गर्भ होना चाहिए कि हमारे समाज के सभी महान व्यक्तित्वों ने जो कुछ भी किया पुरे समाज के लिए किया. यह हमारी पहचान और प्रेरणा स्रोत दोनों है.
Anil Kumar, PhD
लेकिन मौलिक सवाल यह है कि सवर्णवादी वर्चश्व को कैसे चुनौती दिया जाए? समाज के गौतम बुद्धा, राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले, राष्ट्रमाता ज्योतिबा फुले सभी शिक्षा पर बल देतें हैं. बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी शिक्षा को सामाजिक परिवर्थान को सर्वोपरी माना है.
शिक्षा सिर्फ पढ़ने-लिखने की काबिलियत नहीं देता बल्कि वह सोचने-समझने की क्षमता भी बढ़ता है. वह समाज को नए दृष्टि से देखता है. समाज के वास्तविक समस्यायों को समझता है और उसे उसके समाधान भी सुझाता है. आज सिर्फ हमारे समाज ही नहीं बल्कि पूरा पिछड़ा-वंचित-शोषित समाज की ही असली समस्या है कि उनके पास चिन्तक की कमी है. और जो है उसे यह समाज अपने पिछड़ेपन की वजह से नहीं पहचान पाटा और इसलिए उसे तवज्जो नहीं देता. इसका मूल कारन एक ही है – शिक्षा से वंचित होना. और वंचित करने वाला इस देश का ब्राह्मण और सवर्ण समाज है.
आजादी के लगभग 70 साल के बाद भी हम इस बात की लड़ाई लड़ रहें हैं कि न सिर्फ अपने कौम के लोग बल्कि भारत के समस्त पिछड़े-वंचित-शोषित समाज के लोगो की भागीदारी नहीं है. यह भागीदारी दो स्तरों पर नहीं है. पहला स्टूडेंट्स के रूप में और दूसरा शिक्षक के रूप में. भागीदारी की कमी प्राथमिक से लेकर विश्विद्यालय स्तर तक है. भारत में मई-जून 2016 में बौद्धिक वर्गों के बीच यह चर्चा का विषय रहा कि विश्विद्यालयो के एसोसिएट और प्रोफेसर पदों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए प्रतिनिधित्व/आरक्षण नहीं है. भारत में 2006 में अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षा में अन्य पिछड़े वर्गों के स्टूडेंट्स और शिक्षक को क्रमशः एडमिशन और पद पर प्रतिनिधित्व/आरक्षण दिया. जिस चीज को सत्ताधारी जातिवादी नेता आज समझ रहें हैं उसे भारत लेनिन जगदेव प्रसाद आज लगभग 50 वर्ष पहले ही समझ रहें थें. इसी क्रम में यह बताना जरुरी है कि जवाहरलाल नेहरू विश्विद्क्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू भी शिक्षा के महत्त्व को समझते थें. इसलिए उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्क्यालय में सभी वंचित-शोषित-पिछड़े (ST SC OBC DA DNT) समाजो के प्रतिनिधत्व के लिए लड़ाई लड़ा और प्रशासन को अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर दिया. यह चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू का ही प्रयास था जिसके कारन आज जवाहरलाल नेहरू विश्विद्क्यालय पुरे दुनिया में अपनी शोध-गुणवत्ता-सामाजिक आन्दोलनों-प्रतिबद्धताओ के लिए जाना जाता है.
भारत के दोनों महान हस्ती भारत लेनिन जगदेव प्रसाद और क्रन्तिकारी चंद्रशेखर उर्फ़ चंदू कहतें थें कि शिक्षा पर जातीय वर्चस्व टूटना चाहिए. समाज को बदलने के लिए शिक्षा और बौद्धिक लोकतंत्र जरुरी है. दोनों ने इसके लिए लड़ाईयाँ लड़ी कुछ हद तक जीत दर्ज किया और अंततः समाज के लिए अपनी सहादत दी.
भारत के दोनों सितारों के सहादत को हम इस संकल्प के साथ नमन करें कि हमें उनके सपनों को साकार करना है. दोनों हमारे समाज के लिए गर्व का विषय हैं तो हमारा कर्तव्य है कि उनके द्वारा जलाया गया दीया की किरण समाज में फैलाती ही जाए. हमें इस पर गर्भ होना चाहिए कि हमारे समाज के सभी महान व्यक्तित्वों ने जो कुछ भी किया पुरे समाज के लिए किया. यह हमारी पहचान और प्रेरणा स्रोत दोनों है.
Anil Kumar, PhD
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7 Comments
कुछ मात्रात्मक त्रुटियां हैं जिन्हें प्रूफ रीडिंग कर ठीक कर दिया जाता तो बेहतर होता। एक बहुत ही प्रासंगिक और जरूरी तथा बेहतरीन लेख। बहुत बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteदेश की सामाजिक-सांस्कृतिक लड़ाई में वंचित वर्ग के उत्थान के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा जी को प्रेरणास्रोत मानते हुए उनके आदर्शों पर चलने की जरूरत है।
धन्यवाद घनश्याम आगे से ध्यान रखा जाएगा कि कोई भी मात्रात्मक अर्थात spelling त्रुटि न हो।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख सर।
ReplyDeleteआपका आभार
ReplyDeleteअनिल भाई बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी युक्त लेख है. भाषाई गलतियों को छोड़कर रोचक है.
ReplyDeleteआभार सुरेश, तुम भी अपना लेख भेज सकते हो। बहुत से मुद्दों पर अच्छा लिखते हो।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है अनिल सर
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