Photographs within the Sociological Research Process: Image-Based Research, Jon Prosser and Dona Schwartz, 1998

Lecture and Explanation of Reading to be covered:

Prosser, Jon & Dona Scwartz, 1998, ‘Photographs within the Sociological Research Process’ in Image-Based Research: A sourcebook for Qualitative Researchers, Jon Prosser ed., Falmer Press, pp. 101-115

Keywords: Role of Photographer and Videographer, Research Design, Qualitative Research, Qualitative Research, Visual Sociology, Undercover Photography and Videography, Visual Diary, Photo-Elicitation,

Paper: Society Through the Visuals 

Course: BA Programme, Skill Enhancement Course 03 

 University of Delhi



<< INSERT THE PICTURE>>

 

हिंदी में नोट्स (प्रमुख बिंदु)
Unit 2. Sociology and the Practice of Photography
Sub-unit/ Article 2.3

Course Structure 

#1 Important Points to be kept in Mind While Studying the Content

#2 Expected Outcome and Understanding of the Content

#3 General Introduction

#4 Lecture in Detail with Comment, Clarification, and Explanation 

< Lecture and Explanation

 

लेख पढ़ते समय कृपया इस बात का ध्यान रखें कि फोटोग्राफी और विडिओग्राफी के अलग-अलग प्रकार कौन-कौन से हैं? उसकी विशेषता और उपयोग क्या है?

इस लेक्चर के बाद आप यह समझने में सफल होंगें कि विभिन्न प्रकार के फोटोग्राफी और विडिओग्राफी के क्या महत्व है और साथ ही, अन्डरकवर फोटोग्राफी और विडिओग्राफी के क्या महत्व है? फोटोजर्नलिज़म क्या है? रिसर्च डिजाइन क्या है? साथ ही अगल-अलग रिसर्च की क्या विशेषता क्या है?

 

< Lecture and Explanation

 

Word meanings

Epistemology

the theory of knowledge, especially with regard to its methods, validity, and scope, and the distinction between justified belief and opinion. हिंदी में इसे ज्ञान-मीमांसाज्ञान पद्धति शास्त्र कहतें हैं.  

 

फोटो जौर्नालिस्म ज्ञान की एक नई पद्धति है. फोटो जौर्नालिस्म द्वारा समाज को देखने के एक नए तरीके हैंइसलिए यह रिसर्च की भी एक नई पद्धति शास्त्र है. हम फोटो को कैसे और किस रूप में देखते हैं उसका फर्क फोटो के विश्लेषणफोटो रिसर्च ओरिएंटेशन और  फोटो रिसर्च पध्दति पर पड़ता है. यह हर वक्त महत्वपूर्ण होता है कि हम चीजों को कैसे देखते हैंहमारे देखने के तरीके से उसके अर्थ पर फर्क पड़ता है. 

 इसका एक सैद्धांतिक पक्ष भी है. यह महत्वपूर्ण है कि हम इसके पदार्थ (मटेरियल)संस्कृतिप्रतीक (सिंबल)स्त्रीवादीपुरुषवादीशोध करने वाले के भूमिका आदि पहलुओं को कैसे देखते हैं. इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि शोध करने वाले की क्या भूमिका थीइसे देखने की दृष्टि क्या थीवह ऐतिहासिकवकालतजीवनीजीवन-पद्धतिआदि क्या था

यहाँ फोटोग्राफर का रोल/ भूमिका महत्वपूर्ण हो जाता है क्योकि किसी भी चीज को उसके देखने की क्या दृष्टि है इसका फोटो पर फर्क पड़ता है. क्योकि वह वही तथ्य इकठ्ठा करता है और उसकी वही व्याख्या करता है जो उसके मन में होता है या जिससे वह प्रभावित होता है. यह व्यक्तिनिष्ठ है और व्यक्ति के अनुसार बदलता रहता है. 

फोटोग्राफर का रोल रिसर्च को बहुत हद तक प्रभावित करता है. इसलिए आज यह सवाल खड़ा किया जा रहा है कि क्या फोटो लेने में या फिर उसके विश्लेषण में ईमानदारी बारा गई थीक्योकि फोटो लेने वाला चाहे समाजशास्त्री हो या जौर्नालिस्ट या फिर डाक्यूमेंट्री वाला इसके अन्दर किसी समाज या विषय को लेकर दुराग्रह (bias) हो सकता है. अगर दुराग्रह न भी हो तो उस व्यक्ति को समाज को देखने का एक तरीका है जो दूसरेव्यक्तिव्यक्ति समूह और समाज से भिन्न होने के साथ उनके हित में नहीं भी हो सकता है. 

आधुनिक समय में विजुअल रिकॉर्ड में फोटो और विडियो प्रमुख रूप से हैं. लेकिन विजुअल रिकॉर्ड में सिर्फ फोटोग्राफ और वीडियो ही नहीं आते बल्कि जब फोटोग्राफी और वीडियो की तकनीक नहीं थी तब लोग स्केच और पेंटिंग बनाते थेये स्केच और पेंटिंग भी विजुअल हैं। आज हमें प्राचीन और मध्यकालीन समाज के समाज के बारे में जानकारी स्केच और पेंटिंग के माध्यम से मिलता है. स्केच और पेंटिंग का प्रयोग आज भी होता है. 

 

रिसर्च डिजाईन / Research Design 

मुख्यतः दो तरह के शोध और विश्लेषण (Research and Analysis) होतें हैं. Qualitative and Quantitative Research इसे क्रमशः गुणात्मक और  मात्रात्मक शोध कहते हैं. 

गुणात्मक शोध और विश्लेषण में हम शोध के विषय के मानवीय भावों की विश्लेषण करने पर जोर देते हैं.

मात्रात्मक शोध और विश्लेषण में हम शोध के विषय से संबंधित चर (variable) की गणना और उसके गणितीय पक्ष पर जोर देते हैं.  

इस तरह गुणात्मक शोध पद्धति और मात्रात्मक शोध पद्धति के विषयउद्देश्य और उसके उपयोग में अंतर होता है. 

लेकिन हमें यहां ध्यान रखने की जरूरत है कि कोई भी शोध न तो पूरी तरह गुणात्मक होता है और न मात्रात्मक होता है. हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि शोधया विशेषणया पद्धति का झुकाव किधर ज्यादा हैमात्रात्मक की तरफ या गुणात्मक की तरफ. 

जिस तरह समाजशास्त्रनृविज्ञान (एंथ्रोपोलॉजी) और एथनोग्राफिक (ethnographic) स्टडी में रिसर्च डिजाईन का प्रयोग किया जाता है उसी तरह से विजुअल सोशियोलॉजी में किसी रिसर्च डिजाईन निश्चित करना आसान नहीं है. 

अगर हम विभिन्न समय में लिए दो फोटोग्राफ को देखें तो हम विजुअल फोटोग्राफी के महत्व को समझ सकते हैं. उदाहरण के लिए कि समाज में किसी दिए हुए समय में विजुअल और सामाजिक संबंधों में कैसे और क्या परिवर्तन आया. इस  परिवर्तन को हम सिर्फ विजुअल सोशियोलॉजी के द्वारा ही ठीक से समझ सकते हैं. टेक्स्ट में वर्णन तो किया जा सकता है लेकिन वह इतना प्रभावी नहीं होगाजितना की विजुअल प्रस्तुति. हालाँकि यहाँ यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हर विजुअल प्रस्तुति में विश्लेषण भी आवश्यक होता है. विश्लेषण एक अभिन्न 


Data Collection / तथ्यों का संग्रह 

कई शोध/ रिसर्च में विजुअल मेथड का उपयोग प्रमुखता से होता है. विजुअल मेथड का उपयोग उपयोग बहुआयामी है. फोटो बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली डेटा/ तथ्य इकठ्ठा करने में सक्षम है. इसलिए विसुअल मेथड के उपयोग में कैमरा का महत्व काफी बढ़ जाता है। हालाँकि जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि विसुअल में सिर्फ कमेरे से लिए गए फोटो ही नहीं बल्कि पेंटिंग और सकैच भी आता है। 

लेकिन कई बार फोटो लेना इतना आसान नहीं होता है. कुछ परिस्थितियों में फोटो लेना जान जोखिम में डाल सकता है. आपके फोटो लेने से किसी का अहित हो सकता है. अर्थात जिसका फोटो लिया जा रहा है वह यह सोच सकता है कि कुछ परिस्थितियों में फोटो का दुरुपयोग हो सकता है. अगर वह कोई गलत काम कर रहा हो तो फोटो के जरिए वह पकड़ा भी जा सकता है. साथ ही यह भी हो सकता है कि अगर सबूत के रूप में अगर यह विरोधी पार्टी के हाथ लग जाए तो उसका नुकसान हो सकता है. या फिर यह सामान्य निजता का उल्लंघन भी हो सकता है. 

समाज के कुछ संबंधों और विषयों जैसे संस्कृति को सिर्फ विजुअल सोशियोलॉजी (फोटोविडियोपेंटिंगस्केच) से ही बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. इसलिए कुछ विशेष प्रकार के शोध में विजुअल एक आवश्यक अंग बन जाता है. 

 

विजुअल सोशियोलॉजी (फोटो और ऑडियो-विडियो) डेटा संग्रह में दिक्कतें 

समाज को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम ऑडियो और ऑडियो-वीडियो का सहारा लेते हैं लेकिन ऐसा डेटा संग्रह करना आसान नहीं है. इसके निम्नलिखित कारण हैं - 

१) हो सकता है कि शोधार्थी (researcher) को बाहरी समझ कर उसे विजुअल डेटा संग्रह करने से कोई मन करें. सामान्यतः जब हम किसी जगह या व्यक्ति का फोटो लेतें हैं या उसका वीडियो बनाते हैं तो उसके मन में शंका उत्पन्न होता है कि कोई ऐसा क्यों कर रहा या रही हैयह दिक्कत तब ज्यादा होता है जब हम किसी दूसरे समाज में डेटा इकठ्ठा करने जाते हैं. और वह व्यक्ति हमसे अनजान हो. 

२) यह संभव है कि सामने वाला व्यक्ति इसके लिए तैयार न हो. 

३) यह भी संभव है कि कैमरा के सामने वह खुद को ऐसा दिखाएं जो वह है ही नहीं. क्योंकि काई बार यह मानवीय स्वभाव/ nature होता है कि कैमरा के सामने या दुसरे व्यक्ति के सामने हम अच्छा दिखें. और ऐसा लगभग सभी व्यक्ति करते हैं. 

उपयुक्त कारणों के कारण कई बार सामाजिक विज्ञान में रिसर्च के लिए या फिर पत्रकारिता और डॉक्यूमेंट्री के लिए फोटो और ऑडियो-विजुअल के लिए दुसरे तरीकों का सहारा लिया जाता है. इस पद्धति को अंडरकवर फोटोग्राफी / वीडियोग्राफी कहते हैं. सामान्यतः यह तीन प्रकार के होते हैंजो इस प्रकार हैं- 

(१) दूर से फोटो लेना या विडियो बनाना

(२) हिडेन कैमरा / छुपे हुए कैमरे से फोटो लेना या वीडियो बनानाऔर 

(३) खुद को छुपाकर फोटो लेना या विडियो बनाना.  

कई बार हम विषय के जरूरतों के हिसाब से बेहतर और उपयोगी फोटो और वीडियो सिर्फ अंडर कवर फोटो और वीडियो ही ले सकते हैं. वहीँ कई बार परिस्थितियों के जरूरत और मजबूरी के कारण भी हम सिर्फ अंडर कवर फोटो या वीडियो ले सकतें हैं. जैसे अगर कहीं कोई क्राइम हो रहा हो और कोई व्यक्ति या व्यक्ति समूह गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हो.  


डेटा संग्रह में दिक्कत 

कई बार विजुअल सोशियोलॉजी (फोटो और ऑडियो-विडियो) के लिए डेटा संग्रह में दूसरी दिक्कत भी आती हैं. इनमें प्रमुख है- 

(१) जेंडर - कोई पुरुष अगर महिला के ऊपर स्टडी करे तो हो सकता है कि महिला अपनी बात उसे न बता सके. वहीं अगर कोई महिला पुरुष के ऊपर स्टडी करे तब भी यही नियम लागू होगा. 

(२) अगर कोई व्यक्ति पद या ओहदे में छोटा है तो वह बड़े पद और ओहदे वाले व्यक्ति से जानकरी लेने में दिक्कत आ सकती है. 

(३) अगर कोई व्यक्ति सामाजिक रूप से निचले पायदान पर है तो उसे सामाजिक रूप से ऊपर के पायदान के लोगों से डेटा इकट्ठा करने में दिक्कत आ सकती है. 

(४) अगर हम दूसरे सांस्कृतिक या धार्मिक समूहों का अध्ययन कर रहें हैं तो हो सकता है कि हम उनके संस्कृति और धर्म के बारे में गहरे से जानकारी न प्राप्त कर सकें. 

लेकिन हमें विजुअल डाटा कलेक्ट करते समय एथिकलमोरल अर्थात नैतिकता का भी ध्यान रखना रखना चाहिए. इसके साथ-साथ दुसरे व्यक्ति की निजता का भी ध्यान रखना चाहिए. इन सबके साथ-साथ हमें डेटा कलेक्ट करते समय खुद की भी सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए. 

फील्ड में रिसर्च करने के बाद हो सकता है कि वहां देखें या अनुभव किए गए चीजों को हम भूल जाएँ लेकिन फोटो और वीडियो हमेशा रहेंगे. इसका उपयोग बाद के शोधार्थी भी कर सकेंगे. 

 

विजुअल डायरी 

शोधार्थी/ रिसर्चर जब फील्ड में होता है और अपने अध्ययन के दौरान जो वह फोटो और वीडियो लेता है उसे विजुअल डायरी कहते हैं. पारम्परिक रूप से शोधार्थी जब फील्ड में होता है तब वह एक डायरी रोज-रोज की घटनाओंतथ्यों और उसके जो देखा-महसूस किया है उसे लिखा जाता है. ताकि बाद में रिपोर्ट बनाने में आसानी हो और कोई महत्वपूर्ण तथ्य छूट न जाए. उसी तरह एक विजुअल शोधार्थी जब फील्ड में होता है तब वह महत्वपूर्ण चीजों को जब देखता है तब वह उसका फोटो ले लेता है इसे ही विजुअल फील्ड डायरी कहते हैं. 

 

फोटो-इलिसीएसन / Photo-Elicitation 

फील्ड में इंटरव्यू लेते समय या डेटा कलेक्ट करते समय लिए जाने वाले फोटो को Photo-elicitation कहते हैं. उस समय बच्चेबड़े-बुजुर्गऔर उसके वातावरण का फोटो में आने से हम बाद में उसे आसानी से समझ सकतें हैं. जबकि इसे टेक्स्ट वर्णन करना न तो आसान है और न संभव. साथ ही इसे शब्दों में किसी दूसरे व्यक्ति को आसानी से समझाया भी नहीं जा सकता है. साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि इससे हमें लोगों के हाव-भावऔर वातावरण को समझने में मदद मिलती है। यह हमें फील्ड की परिस्थिति और समय को भी बताती है. 

लेकिन फोटोग्राफी का अपने आप में कोई विशेष अर्थ तब तक नहीं पता नहीं चल सकता है जब तक कि उसका व्याख्या न कि जाए. इसलिए यह जरूरी है कि फोटो कि व्याख्या भी की जाए. 

 

व्याख्या / Analysis 

गुणात्मक रिसर्च में फोटो का विश्लेषण टेक्स्ट के साथ करना एक लम्बी प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में फोटो का इस्तेमाल महत्वपूर्ण हो जाता है क्योकि इससे हमें वस्तुस्थिति को समझने में मदद मिलती है. 

कैमरा खुद फोटो नहीं खींचता है. हम यह भी कह सकते हैं कि कैमरा खुद वीडियो नहीं बनाता है. वस्तु और कैमरा के बीच कड़ी का काम करता है फोटोग्राफर और या विडियोग्रफर. इसलिए इसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. 

चुकीं कैमरा खुद फोटो नहीं खींचता है इसलिए कैमरे को ऑपरेट करने की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाता है. साथ ही उनकी भूमिका फोटो और विडियो में भी महत्वपूर्ण हो जाता है. 

This lecture was delivered during the Odd Semester (July to November) 2019 to the students of the University of Delhi. Visit here for Syllabus and other lectures for BA Programme, Skill Enhancement Course 03,  Society Through the Visuals. 

Syllabus | Study Material | Lecture | Question Bank 
https://studywithanil.blogspot.com/2021/04/Syllabus-and-Study-Material-Hindi-Society-Through-the-Visual-Bachelor-of-Arts-BA-Programme-CBCS-Sociology-University-of-Delhi.html  

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Anil Kumar | Student of Life World

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