Anthropological Filmmaking: An Empirical Art, David MacDougall, David. 2011 (in, Sage Handbook of Visual Research Methods, Eric Margolis, Luc Pauwels)

Lecture and Explanation of Reading to be covered:

MacDougall, David. 2011. ‘Anthropological Filmmaking: An Empirical Art.’ in Sage Handbook of Visual Research Methods, Eric Margolis & Luc Pauwels (eds), pp. 99-113

Keywords: Visual Anthropology, Anthropological Filmmaking, Cinema and Social Science, Positioning Bias and Truth, The Participatory Observation, Methodological Consideration, Research Relationship, Filmmaking Behaviour, Filming Strategies, Mode of Reflexivity,

Paper: Society Through the Visuals 
Course: BA Programme 
Skill Enhancement Course 03  
University of Delhi



<< INSERT THE PICTURE>>

 

हिंदी में नोट्स (प्रमुख बिंदु)


Unit 3, Video and Film in Sociology 
Sub-unit/ Article 3.2  

Course Structure 

#1 Important Points to be kept in Mind While Studying the Content

#2 Expected Outcome and Understanding of the Content

#3 General Introduction

#4 Lecture in Detail with Comment, Clarification, and Explanation 

 इस लेक्चर को पढ़ने के बाद आप विभिन्न प्रकार के रिसर्च फिल्म के महत्व, उसके बनाने के तरीके, और बनाने के दौरान आने वाली दिक्कतों को समझ पाएंगे.

 < Lecture and Explanation

Word meaning 

* Empirical = based on, concerned with, or verifiable by observation or experience rather than theory or pure logic. अनुभवजन्य, आनुभविक, प्रयोगसिद्ध, अनुभवसिद्ध

 

Theoretical Considerations/ सैध्यांतिक महत्त्व 

 Anthropological फिल्म बनाने के लिए जरूरी है कि इसके विषय अन्थ्रोपोलॉजिकल हो, अपने समय के किसी भी परिभाषा के हिसाब से. लेकिन चुकी आज या इतिहास में भी एंथ्रोपोलॉजी के कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है इसलिए इसलिए यह निर्णय करने में हमें कठिनाई होती है कि विषय अन्थ्रोपोलॉजिकल है या नहीं. लेकिन साधारणतः इसके अंतर्गत सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन आता है. एंथ्रोपोलॉजी के विचार, सब्जेक्ट मैटर, और मेथोदोलोग्य हमेशा बदलते रहें हैं. और यह अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म और उसका प्रोसेस में भी झलकता है. अन्थ्रोपोलोजीकल में आज के समय एजेंसी ऑफ़ इंडिविजुअल, उसका व्यक्तिपरक अनुभव, सामाजिक परफॉरमेंस, परिस्थितियां, वातावरण, आदि का विसुअल हमारे उद्देश्य को पूरा करतें हैं, लेकिन शायद सामाजिक संरचना (social structure) और धार्मिक विश्वास जैसे पारंपरिक अन्थ्रोपोलोजीकल विषय एक लिए ज्यादा suitable नहीं है. इसके कारण विजुअल एंथ्रोपोलॉजी के विषय चयन में १९वीं शताब्दी की तुलना में परिवर्तन आया है. आजकल विजुअल अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म मेकिंग में नॉन-विजुअल एलिमेंट को भी प्राथमिकता दी जा रही है. ऑडियो-विजुअल फिल्म मेकिंग में आज समाज को ज्यादा एक्स्प्लोर किया जा रहा है. इसमें सामाजिक अनुभव, जिसमें विचार, आईडिया, फीलिंग, और नॉन-वर्बल अनुभव, aesthetic (सौंदर्यशास्त्र-संबंधी), role of sense (समझ की भूमिका) और इसके साथ-साथ रोजमर्रा के फॉर्मल और इनफॉर्मल (औपचारिक और अनौपचारिक) जिंदगी शामिल है. 

 

Visual Anthropology and Writing/ विसुअल/ दृश्य एंथ्रोपोलॉजी और लेखन 

 यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस बिंदु पर पारंपरिक और विजुअल एंथ्रोपोलॉजी के स्टडी में मतभेद है. एंथ्रोपोलॉजी एक विषय के रूप में अन्य विषयों से अलग है. इसे एक अलग विशेष मेथड के द्वारा स्टडी किया जाता है. विसुअल एंथ्रोपोलॉजी एक नए विषय के रूप में एक चैलेंज भी है, क्योकि यह लिखित शब्दों से ऑडियो-विसुअल कि और बढ़ रहा है. आधुनिक संसाधनों का उपयोग करके, वैज्ञानिक अध्ययन पद्धति से डेटा कलेक्ट/ संग्रह और उसका विश्लेषण कर आज एंथ्रोपोलॉजी एक विज्ञान के रूप में भी उभर रहा है. 

 नोट: स्टूडेंट्स कृपया यहाँ ध्यान दें कि विज्ञान का अर्थ भौतिकी, रसायन, जीव विज्ञान (Physics, Chemistry, Biology) से होकर वैज्ञानिक पद्धति से अर्जित ज्ञान से है. इसके तहत किसी तथ्य को वैज्ञानिक तरीके से संग्रह, विश्लेषण और निष्कर्ष निकाला जाता है. अर्थात विज्ञान का अर्थ वैज्ञानिक पद्धति से है न कि किसी विषय विशेष से. 

एंथ्रोपोलॉजिकल फिल्म में हम टेक्स्ट का भी उपयोग करते हैं क्योकि जिस तरह से टेक्स्ट कि एक लिमिट है उसी तरह विजुअल की भी एक लिमिट है. यह स्क्रीन पर विजुअल डिस्क्रिप्शन के रूप में होता है. 

 

Anthropological Filmmaking as a Process/ एंथ्रोपोलॉजीकल फिल्म मेकिंग एक प्रोसेस के रूप में

आज एंथ्रोपोलॉजिकल फिल्म मेकिंग महत्वपूर्ण होने के साथ बहुआयामी भी हो गया है. क्योकि अब समाज पर बहुत से एलिमेंट प्रभाव डाल रहे हैं जैसे भूमंडलीकरण (globalization), विस्थापन (migration), लैंगिक (gender), भावना (emotion), व्यक्ति (individual), सामूहिक पहचान (group identity), और दृश्य संस्कृति  (visual culture). इन सबके साथ-साथ एनी कारणों के कारण फिल्म बनाने के लिए एक रिसर्च की जरुरत होती है. रिसर्च की जरूरत इसलिए भी होती है कि आज फिल्म को ज्ञान के स्रोत भी माना जाता है जो कि पहले सिर्फ प्रिंट पब्लिशिंग के रूप में ही जाना जाता था. फिल्म मेकिंग समाज को देखने का एक तरीके है यहाँ नजरिया (view/ perspective) का भी महत्व है. एंथ्रोपोलॉजीकल फिल्म मेकिंग और दुसरे एंथ्रोपोलॉजीकल रिसर्च में एक बहुत बड़ा अंतर है, फ़िल्म बनाने और उसके पब्लिकेशन में बहुत कम दुरी का होना. क्योंकि फिल्म दोबारा शूट नहीं किया जा सकता है, उसे उसी समय शूट करना होता है जब घटना घटित हो रहा होता है. सिर्फ बाद में एडिट किया जा सकता है. जबकि दूसरे एंथ्रोपोलॉजिकल राइटिंग को बाद में लिखा जाता है और उसे एडिट किया जा सकता है. 

 

Cinema and Social Science / सिनेमा और सामाजिक विज्ञान 

सिनेमा और समाज में क्या सम्बन्ध है इसपर समाज में लोग एक मत नहीं है. लेकिन इसपर सभी एक मत है कि सिनेमा कम या ज्यादा समाज को ही परिलक्षित करता है. समाज को ही दर्शाता है. जहाँ कमर्शियल सिनेमा में कल्पना का भी सहारा लिया जाता है. अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म में एक अलग रणनीति अपनाई जाती है ताकि उसके द्वारा समाज के सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को समझा जा सके. अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म का एक उद्देश्य नए ज्ञान का निर्माण करना भी है. 

 

Positioning, Bias, and Truth/ स्थिति, पक्षपात, और सच्चाई 

अन्थ्रोपोलोजिकल फिल्म मेकर का समाज और और जहाँ वह स्टडी कर रहा है वहां उसके स्थिति और जिसपर वह स्टडी कर रहा है उसक्से उसके संबंधो का स्टडी पर असर पड़ता है. यह स्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यही यह निर्धारित  करता है कि वह क्या रिकॉर्ड करेगा और उसे किस दृष्टि से देखगा, और वह उसका निष्कर्ष कैसे निकालेगा? यह संभव है कि वह किसी समाज के बारे में पक्षपात विचार रखता हो और उस समाज के सच को न दिखाए. इसलिए एंथ्रोपोलॉजिस्ट से यह आशा की जाती है कि वह अपने रिसर्च में वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल करते हुए समाज के सच को दिखाएं और भेदभाव या पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम न करें. 

 

The Participant Observer/ सहभागी अवलोकन 

अन्थ्रोपोलोजिकल फिल्म में वस्तुनिष्ठता (objectivity) का प्रश्न सबसे बड़ा प्रश्न है. लेकिन अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म मेकर सच्चाई को एक वस्तुनिष्ठता (single objective reality) के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं. उदाहरण के लिए किसी अनुष्ठान (ritual) में क्या वस्तुनिष्ठता हो सकता है? यह किसी रिवाज, और प्रतीक (symbol),  के संरचना (structure) का एक हिस्सा है, जिसका अर्थ उसके करने वाले के फीलिंग में छुपा है. यह ऐसा ही है. लेकिन फिल्म बनाने वाले को यह चुनना होगा कि वह किस पहलू (aspect) और परिप्रेक्ष्य (perspective) को चुनता है. यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्तिपरक (subjective) और वस्तुनिष्ठता (objectivity) एक दुसरे का विकल्प नहीं है. हमें रिसर्च में इसे संतुलित करना होता है, और हर फिल्म मेकर इसे अपने तरीके से करता है. 

इसके अनुसार एक सवाल उठा खड़ा होता है कि फिल्म बनाने समय फिल्म बनाने वाले को अलग खड़ा होना चाहिए या उसके साथ संवाद करना चाहिए. अगर हम दूर खड़ा होतें हैं तो हम बिना किसी बाधा या व्यवधान के वास्तविकता को रिकॉर्ड कर सकतें हैं. लेकिन अगर हम उनके साथ घुलते मिलते हिं उनसे संवाद करते हैं तो इसका एक लाभ यह है कि हम संवाद के द्वारा उनसे कुछ सीख भी पातें हैं, संवाद के जरिए उनको बेहतर समझ पाते हैं. 

अन्थ्रोपोलॉजिकल रिसर्च में कई कई विधियों को प्रयोग में लाया जाता है, जैसे दिन-प्रतिदिन के जिंदगी का अवलोकन (observation), सहभागिता (participation), informant के साथ interview, सांख्यिकी सर्वे (statistical survey) आदि. फिल्म मेकर भी इन्हीं विधियों में अपनी संभावनाओं को तलाशते हैं. Malinowski का सहभागी अवलोकन (participant observation) के इसका सर्वोत्कृष्ट (quintessential) उदाहरण है. लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है कि कितना सहभागी, कितना अवलोकन और कैसे? यही सवाल अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म मेकर के लिए भी महत्वपूर्ण है. 

 

Methodological Considerations/ प्रणाली विज्ञान पर विचार 

अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म मेकर फिलिमिंग मेथड और रिसर्च मेथड दोनों में शामिल होतें हैं. फिल्म बनाने के लिए उन्हें सामाजिक और टेक्नोलॉजी दोनों स्तरों पर शोध करना पड़ता है. इसके विभिन्न पहलू निम्नलिखित हैं - 


  • Prospective User/ संभावित उपयोगकर्ता/ संभावित उपभोक्ता 

अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म अन्य फिल्मों की ही तरह इस पर निर्भर करता है कि इसका संभावित उपयोगकर्ता या उपभोक्ता कौन है? अपने उपयोगकर्ता या उपभोक्ता के अनुसार वह अपने फिल्म का विषय, और पद्धति (methodology) तय कर करता है. इसमें कई संभावनाएं हैं. फिल्म मेकर किसी विशेष विषय पर ध्यान दे सकता है. वह कोई केस स्टडी कर सकता है, जिसमें कई variables (चरों) का वह प्रयोग और विश्लेषण कर सकता है. उदाहरण के लिए अगर वह किसी शिल्पकार  (craftsperson) का वस्तुनिष्ठ फिल्म बनाता है तो उसके निम्नलिखित संभावनाएं हो सकती है - 

(१) तकनीकी प्रगति को दर्शाना

(२) शिल्पकार के ज्ञान और शिल्प को दर्शाता

(३) उसके मेहनत को दर्शाना

(४) शिल्पकार के व्यक्तित्व को दर्शाना

(५) किसी काल खंड को दर्शाना

(६) किसी संवेदनात्मक (sensory) वातावरण को दर्शाना

(७) सांस्कृतिक कार्य पद्धति (cultural function) या कलात्मक परंपरा (artistic tradition) आदि को दर्शाना. 

 

इस तरह हम देखते हैं कि एक ही वस्तु स्थिति का अर्थ इसके संदर्भ के अनुसार बदल जाता है. यह बदलाव अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्मिंग के दिशा को भी बदल देता है. 

फिल्म क्या बनाना है यह इस पर भी निर्भर करता है कि फिल्म बनाना कितना संभव है? उदाहरण के लिए नातेदारी-रिश्तेदारी को समझाने के लिए हम कितना और कैसे फिल्म बना सकते हैं? उदाहरण के लिए हंसी-मजाक (jocking relations) को दर्शाना. 

 न्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म बनाने के क्रम में तकनीकी पक्ष भी उनके दर्शक या उपभोक्ता के हिसाब से तय होता है. उदहारण के लिए अगर हमें क्लास में बच्चो को पढ़ना हो तो वहां illustration ज्यादा योयोगी हो सकता है लेकिन inttelectual बहस के लिए नहीं. लेकिन यह कोई कठिन तय नियम भी नहीं है. 



  • Crew and Collaboration/  कर्मीदल/ चालकदल और सहकार्यता

 किसी भी अन्य फिल्म की तरह अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म बनाने के लिए कर्मीदल और सहकार्य की आवश्यकता होती है. इसका एक लाभ यह है कि जिसका फिल्म बनाया जा रहा है वह सहज महशुश करेगा. और फिल्म बनाने वाले और जिसका फिल्म बनाया जा रहा है उसके बीच एक संबंध भी स्थापित होगा. लेकिन यह भी हो सकता है कि सामने वाला व्यक्ति या समूह जिसका फिल्म बनाया जा रहा है वह कई व्यक्तियों के उपस्थिति के कारण सहज महसूस न करें. दूसरी और कुछ विषय राजनीतिक रूप से ज्यादा संवेदनशील हो सकता है ऐसे में यह उनके निजता को भंग कर सकता है और या ऐसा होने की उनमे आशंका हो सकती है. 

 एंथ्रोपोलॉजिस्ट अपने विषय का ज्ञाता हो सकता है लेकिन फिल्म बनाना एक दूसरी कला है. इसलिए एंथ्रोपोलॉजिस्ट और फिल्म मेकर के बीच सहकर्यता या मिलकर कार्य करना दोनों के लिए उपयोगी हो सकता है. इसमें दोनों को एक दूसरे के कार्यों के विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा. 



  • Research Relationship/ शोष सम्बन्ध 

 फिल्म मेकर और जिसका फिल्म बनाया जा रहा है उसके बीच के सम्बन्ध स्पष्ट रूप से बहुत आसान नहीं है. दोनों के बीच सम्बन्ध धीरे-धीरे काम करते हुए उभरता है और मजबूत होता है. यह सम्बन्ध इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योकि सामाजिक लोक-लाज-लिहाज के कारण कई बार लोग अपनी बात खुल कर नहीं कह पाते हैं. साथ ही इस बात का भी डर होता है कि कहीं उनकी निजता भंग न हो जाए. उनकी बात कोई इधर का उधर न कर दे. यह समस्या और भी विकराल हो जाता है जब समाज काफी पिछड़ा हो, समाजिक बंधन ज्यादा हो, या फिर राजनीतिक रूप से बहुत स्थिर न हो या सैनिक शासन हो या फिर उसके अन्दर ऐसी ही कोई और डर हो. इसलिए जरूरी है कि रिसर्च करते समय एथिक्स का पालन किया जाए, और दोनों के बीच एक विश्वास का सम्बन्ध स्थापित हो. 


  • Fieldwork and Filming/ क्षेत्रकार्य और फिल्म बनाना 

 क्षेत्र कार्य या फिल्डवर्क किसी भी रिसर्च का एक महत्वपूर्ण अंग है. विशेषकर सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में. इससे हमें प्राथमिक डेटा/ ज्ञान मिलता है. विजुअल सोशियोलॉजी या एंथ्रोपोलॉजी के लिए हमें फोटो और वीडियो भी रिकॉर्ड करना होता है. लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है कि हमें अपना क्षेत्रकार्य कब शुरू करना चाहिए? इसका सही जवाब है हमें पहले ही दिन से फोटो और वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू कर देना चाहिए. इसका कारण यह है कि हो सकता है कि कुछ दिनों के बाद हम जिसे रिकॉर्ड करना चाहतें हैं वह रहे ही न, या फिर वह बदल जाए. इसका दूसरा कारण है कि बाद में हम जिसका स्टडी कर रहें हैं वह हमारे बारे में कोई धारणा बना ले, इस कारण वह हमें सोच-समझकर रणनीतिक रूप से जवाब देगा. वहीं दूसरी ओर हो सकता है कि रिसर्चर भी अपने विषय के बारे में कोई धारणा बना लें. उसे किसी से विशेष अनुराग या विराग उत्पन्न हो जाए. 


  • Filmmaking Behaviour/ फिल्म बनाने में व्यवहार 

 इसके अंतर्गत, फिल्म बनाने वाले के व्यवहार, जिसका फिल्म बनाया जा रहा है उसका व्यवहार, और तकनीकी पक्ष पर जोर दिया गया है. फिल्म बनाने वाला का व्यवहार अचअच्छा होना चाहिए, उसे अच्छे कैमरा, लाइट, आदि का प्रयोग करना चाहिए. जिसका फिल्म बनाया जा रहा है वह कैमरा के सामने कैसा व्यवहार करेगा उसे न तो कण्ट्रोल किया जा सकता है और न पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. फिल्म बनाते समय हमें एथिक्स का ध्यान रखना चाहिए. 


  • Camera Modes/ कैमरा मोड 

 हमें सही कैमरा, कैमरा सही मोड में, इस्तेमाल करना चाहिए ताकि फोटो और फिल्म अच्छी बनें. 


  • Filming Strategies/ फिल्म बनाने की रणनीति 

 अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म मेकिंग के मुख्य सेंटर सामाजिक अनुष्ठान (ritual), सामाजिक संस्थान (social institution) जैसे विवाह यहाँ तक की वैचारिकी (abstraction), पहचान या पुस्र्षत्व (masculinity) भी शामिल हैं. यह व्यक्ति विशेष या सामूहिक भी हो सकता है. फिल्म मेकर के लिए यह उचित होगा कि वह किसी विश्वसनीय श्रोत से कोई इंफॉर्मेशन ले. इसके लिए जरूरी है कि संयम और लचीलापन से काम लिया जाए. फिल्म बनाने के दौरान उतावला उया निराश नहीं होना चाहिए. फिल्म बनाने से पहले से तथ्यों को का बड़ी सावधानी से इकठ्ठा करना चाहिए या फिर तय करना चाहिए कि क्या फिल्मांकन करना चाहिए. विजुअल एंथ्रोपोलॉजी को में विजुअल कल्चर का भी स्कोप देखना चाहिए, इसका अपना महत्व है और और यह विजुअल एंथ्रोपोलॉजी के लिए भी उपयोगी है. 


  • The Cinematic Triangle/ सिनेमाई त्रिकोण 

 अधिकतर एंथ्रोपोलॉजिस्ट इससे सहमत हैं कि विजुअल स्टडी के त्रियामा या त्रिकोणीय संबंध है- 

(१) फिल्म मेकर और दर्शक के बिच का सम्बन्ध

(२) फिल्म मेकर और विषय के बिच का सम्बन्ध, और 

(३) फिल्म के विषय और दर्शक के बिच का सम्बन्ध. 

 

(१) फिल्म मेकर और दर्शक के बिच का संबंध उसके फिल्म के प्रकार से हैं कि दर्शक किसी विशेष फिल्मकार के क्या आशा कर सकते हैं? फिल्म मेकर किसी फिल्म को बनाने में कितना रिसर्च करता है या फिर वह प्रचलित धारणाओं को ही दिखाता है इससे भी दोनों के बीच के सम्बन्ध निर्धारित होते हैं. क्या फिल्म के जरिए वह समाज को कुछ नया दे रहा है? यह भी महत्वपूर्ण है. 

 (२) फिल्म मेकर जिसका फिल्म बना रहा है उससे उसका क्या और कैसा सम्बन्ध है? यह एक समय के बाद ही उभर कर सामने आता है. लेकिन शुरुआत में वे कैमरा के सामने कैसा व्यवहार करते हैं? क्या वे इससे अवगत है कि उनका फिल्म बनाया जा रहा है? क्या वे इससे अवगत हैं इ फिल्म बनाने वाला उनके ही बीच मौजूद है? अगर हाँ तो वे उसके प्रति वे अपनी प्रतिक्रिया कैसे देते हैं

 (३) आखिरी बात यह है कि किसी फिल्म को दर्शक किस रूप में देखते हैं. उस फिल्म के बारे में अपनी क्या समझ बनाते हैं. 

 फिल्म मेकर अपने दर्शकों को किस रूप में लेता है यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योकि फिल्म मेकर कैमरा से सब्जेक्ट को रिकॉर्ड करता है, लेकिन उसका एक अदृश्य भाग होता है दर्शक. लेकिन दर्शक फिल्म बनाते समय वहां मौजूद नहीं होता है. हर फिल्म बनाने वाला यह सोचता है कि उसका दृष्टिकोण सही है लेकिन दर्शक का भी अपना एक दृष्टिकोण होता है जो विविध है. 



  • Modes of Reflexivity/ स्वतुल्यता के प्रकार

 (Reflexivity= निजवाचक, आत्मवाचक. Mode= साधन, प्रकार, प्रणाली, ढंग, रंग, अंदाज़, संचार, सूरत, तरह, भांति, तरक़ीब, रीति)

 फिल्म बनाने की प्रक्रिया एकांकी प्रक्रिया नहीं है. बल्कि यह कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है. इसे हम व्यक्तिगत रूप से नहीं देख सकते हैं, क्योंकि वह पर्याप्त नहीं विश्वसनीय नहीं होगा. लेकिन साथ ही फिल्म बनाने की प्रक्रिया औद्योगिक से ज्यादा व्यक्तिगत है. हम फिल्म बनाने वाले के व्यवहार से बहुत कुछ सीख सकते हैं. 

 अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म में यह आशा की जाती है कि (फोटो और) वीडियो के साथ-साथ फिल्म सिचुएशन कि एक छोटी सी नोट भी दी जाए. यह कई जगह नहीं होता है जिससे हमें फिल्म, फिल्ड या परिस्थिति को ठीक-ठीक समझने में दिक्कत हो सकती है. 

 रिफ्लेक्सीविटी का अर्थ यहाँ फिल्म के कॉन्टेक्स्ट में है, जिसमें हमें उसके प्रोडक्शन के बारे में पता चलता है. 

 अन्थ्रोपोलॉजिकल फिल्म बनाने वाले को दो तरह के रिफ्लेक्सीविटी को स्पष्ट करना चाहिए- 

 (१) पहला है, कि फिल्म बनाने की परिस्थितियां काफी स्पष्ट और मुखर है. इसमें फिल्म मेकर और विषय के बिच का इंटरेक्शन, वोइस ओवर (voice over) आदि शामिल हो सकता है, जिससे हमें फिल्म के परिस्थितियों के बारे में पता चल सकता है, इसमें हमें सब्जेक्ट की संस्कृति भी समझने में सहायता मिलती है. 

(२) दूसरा, एक दूसरा अन्तर्निहित रिफ्लेक्सीविटी यह है कि कौन सा दर्शक फिल्म के प्रति ज्यादा sensitive है. यह फिल्म मेकर के रिसर्च और व्यक्तिगत व्यवहार पर मुहर है. 



  • The Experience of Individuals/ व्यक्ति के अनुभव 

 भारत सहित पूरी दुनिया में सांस्कृतिक विविधता है. इस विविधता के कारण यह संभव है कि एंथ्रोपोलॉजिकल फिल्म को लोगों को समझने में दिक्कत हो. इसके लिए जरूरी है कि फिल्म मेकर उन दृश्यों कि स्पस्तीकरण भी दें, उसका अर्थ बताए. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि  एंथ्रोपोलॉजिकल फिल्म बनाना एंथ्रोपोलॉजिकल राइटिंग/ लेखन से अलग है. लेकिन फिल्म की एक खासियत यह है कि इसे देखकर कोई भी समझ सकता है जबकि टेक्स्ट समझना आसान नहीं है. 

 फिल्म किसी व्यक्ति के दिमाग में नहीं घुस सकता है लेकिन उसमें एक कम्युनिकेशन है जिसका दर्शकों पर असर होता है. 

उदाहरण के लिए यहाँ दो डॉक्यूमेंट्री फिल्म के उदाहरण दिए गए हैं. यह एंथ्रोपोलॉजिकल भी है. आप इसे देखें और कमेंट करें. यह जादूगोड़ा में रहने वाले आदिवासियों के ऊपर बनाई गई फिल्म है. जादूगोड़ा में युरेनियम निकलता है, जिससे परमाणु बम और परमाणु इंधन बनता है. 

(१)  https://twitter.com/AClasslessClass/status/1197907719375618051 

(२)  https://twitter.com/AClasslessClass/status/1197908089397116930

 

ऊपर दिए डॉक्यूमेंट्री को देखें, और समझने की कोशिश करें कि विजुअल का क्या महत्व है? क्या उन परिस्थितियों को विजुअल के बिना समझाया जा सकता था

 This lecture was delivered during the Odd Semester (July to November) 2019 to the students of The University of Delhi. Visit here for Syllabus and other lectures for BA Programme, Skill Enhancement Course 03,  Society Through the Visuals. 

Syllabus | Study Material | Lecture | Question Bank

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Anil Kumar | Student of Life World

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