Dear students,
Being STUDENTS OF SOCIOLOGY means not only studying theories and books. We must be aware about our social realities. We must see what happening into our surroundings, how these phenomenon are operating in society. This is also important when you want to be a good lawyer for society.
On the other hand, being TEACHER OF SOCIOLOGY means also not to teach theories and whatever written books.
The duty and responsibility of teacher is to train their students with social realities. Make capable their students who can relate social realities and incidents with social theories and able to understand in theoretical and practical ways.
Hence today April 19, 2014, I am going to JNU for attending public meeting on recent incident in Haryana. Hope you found me that in class every time I use to give practical examples, which comes from these seminars, debates and discussions.
Subject: Heinous Crime against Women in Haryana and Question of Caste
Venue: Satluj Hostel’s Mess, Date: April 19, 2014 (Saturday), Timing: 9:30pm
Speakers:
1. Victim of Bhawana Village and their relatives
2. Vedpa Singh Tanwar, Social-Political Worker, Haryana
3. Dr. Prem Singh, University of Delhi
4. Ivan Kostka, Chief Editor, Forward Press
5. Anita Bharati, Thinker, Activist, Writer and Teacher
Organizer: All India Backward Students’ Forum
Short programme description:
हरियाणा में महिला उत्पीडन और जाति का सवाल
गत 23 मार्च को हरियाणा के भगणा गांव (जिला-हिसार) की दलित परिवार की चार लडकियों को दबंग लोगों ने उठा लिया और उनके साथ तीन दिनों तक लगातार गैंग-रेप किया जाता रहा। यह वही भगणा गांव है, जहां की दबंग जातियों ने पिछले दो वर्षों से दलित-पिछडों का सामाजिक वहिष्कार कर रखा है। दबंगों की ताकत का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि न्यायपालिका, मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जाति आयोग आदि के हस्ताक्षेप के बावजूद वे इस सामाजिक वाहिष्काकर को खत्म नहीं कर पा रहें हैं या कह सकते हैं कि सरकारी मशीनरी भी ख़त्म नहीं करा पा रही है.
सरकार के पास बहुत सारी शक्तियां होती है, ऐसे में पिछले दो वर्षो से दलितों का जीना पहले से भी और दुर्भ होना साबित करता है कि इस बहिस्कार में सरकारी तकते भी सामिल हैं.
खाप पंचायतों के भय से वहां न उनकी बात पुलिस सुनती है, न राजनेता। बलात्कारर पीडित ये लडकियां अपने सैकडों परिजनों के साथ पिछले दो दिनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठी हैं। यहां भी उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। न्यादय की इस लडाई में इनके परिजन जेएनयू समुदाय से सहयोग मिलने की उम्मीनद करते हैं।
यह वही मिडिया है जो अन्ना, अरविन्द और बाबा रामदेव को जंतर - मंतर से 24 घंटे लाइव दिखाता है और जो असली पीडिता है उसे नजरंदाज कर के उसके पीड़ा को और भी बढ़ाने में भूमिका निभाता है.
इसी मिडिया का और TV का जन्म है "आम आदमी पार्टी" जिसके नेता योगेन्द्र यादव, और अरविन्द केजरीवाल कहते हैं "खाप एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है" जिसे 'आम आदमी पार्टी' इंटेलेक्चुअल और रणनीतिक सलाहकार JNU के प्रोफ़ेसर आनंद कुमार (Prof. Anand Kumar, AAP) और JNU के ही
प्रोफ़ेसर कम मित्र चिनॉय (Prof. Kamal Mitra Chenoy, AAP) भी अपनी सहमति देते हैं.
ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूीडेंटस फोरम, जेएनयू ने सभी छात्र-छात्राओं से जंतर मंतर पहुंचकर इनका साथ देने की अपील किया है। इस संगठन ने धरने पर बैठी पीडित महिलाओं व पुरूषों को कैंपस में भी आमंत्रित किया है।
विषय : हरियाणा में महिला उत्पीठडन और जाति का सवाल
स्थान : सतलज हॉस्टेल मेस
दिनांक : 19 अप्रैल, 2014 (शनिवार)
समय : 9.30 P.M.
वक्ताक :
1. भगाना की पीडित लडकियां व उनके परिजन
2. वेदपाल सिंह तंवर, सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता, हरियाणा
3. डॉ. प्रेम सिंह, दिल्ली विश्विद्यालय
4. आयवन कोस्का, मुख्यि संपादक, फारवर्ड प्रेस
5. अनिता भारती, चिन्तक, एक्टिविस्ट, लेखक, & शिक्षक
आयोजक : ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूवडेंट फोरम, जेएनयू
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Dalits especially women are more victim of caste violence all over India, where ration is low to those state where caste politics is higher like Bihar and Utta Pradesh. Recently a Dalit women were burned in Ahmadabad, Gujrat, for just a mere family dispute. Could they burn any other women? Or our media and government could remain silent like this on other cases?
हैवानियत: 14 लड़को ने एक महिला को बीच चौराहे पर जिंदा जलाया, April 17, 2014, 09:42am
अहमदाबाद: एक दलित महिला को 14 युवकों ने सोमवार को बीच चौराहे पर जिंदा जला दिया। यह घटना गुजरात के मालपुर तहसील के हेलोदर गांव की है। घटना के बाद गांव में आक्रोश फैल गया। पुलिस के अनुसार, हेलोदर गांव में कालाभाई मानाभाई की बेटी ने कोकीलाबेन के जेठ के बेटे के साथ प्रेम विवाह कर लिया था। इससे दोनों परिवारों के बीच झगड़ा चल रहा था।
सोमवार शाम को कोकीलाबेन घर में अकेली थी। इस दौरान गांव के ही कालाभाई, मुलाभाई, डाहाभाई, भावेश भाई सहित 14 युवक घर में घुस गए और कोकीलाबेन को घसीटकर चौराहे पर लेकर आए। वहां महिला के हाथ-पैर बांध दिए और केरोसिन छिड़ककर उसे जिंदा जला दिया। वारदात के बाद आरोपी फरार हो गए। महिला को अहमदाबाद सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ हत्या का प्रकरण दर्ज कर लिया है।
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दुष्कर्म पीड़िताओं का साथ देंगे जेएनयू के छात्र
अमर उजाला, नई दिल्ली, शनिवार, 19 अप्रैल 2014
पिछले दो दिन से जंतर-मंतर पर बैठीं रेप पीड़िताओं को जेएनयू के छात्रों का समर्थन मिला है। ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम के प्रोफेसर और सदस्य शुक्रवार को इनसे मिलने पहुंचे। पीड़िताओं की आपबीती सुनने के बाद प्रोफेसर और छात्रों ने कहा कि उन्हें न्याय दिलाने के लिए आंदोलन करेंगे।
इस दौरान दलित महिलाओं पर पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ छात्रों ने कहा कि हरियाणा की सरकार ने इन लड़कियों का संज्ञान न लेकर एक और अत्याचार किया है।
उन्होंने आरोपियों के फरार रहने पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया। इस संबंध में प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि दलित लड़कियों को अगवा कर बलात्कार करना और फिर दोषियों को कड़ी सजा न मिलना सामंती विचारधारा का प्रतीक है।
उन्होंने पीड़िताओं और महिलाओं से वादा किया कि जब तक उन्हें न्याय और आरोपियों को फांसी की सजा नहीं मिल जाएगी, सभी उनका साथ देंगे। इस दौरान छात्रों ने आंदोलन करने की भी बात कही। हिसार से आए वेदपाल तंवर ने कहा कि जंतर-मंतर पर धरना दे रहे सभी लोग शनिवार को जेएनयू जाएंगे।
नोट: JNU के छात्रों ने जातिय उत्पीडन के शिकार हरियाणा की लड़कियों और महिलायों का साथ AIBSF के नेत्रित्व में दिया, जिसका कार्यक्रम ऊपर लगा है. (कुछ दिन में या आज ही फोटो लगा दिया जायगा)
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प्रमोद रंजन (सामाजिक चिन्तक, लेखक, मिडिया कर्मी एक्टिविस्ट और फॉरवर्ड प्रेस के एडिटर)
इनके विचार फेसबुक पर भी है .
(तस्वीर में : दलितों के आंदोलन के वहिषकार की घोषणा के बाद हरियाणा भवन, दिल्ली के किनारे खडे पत्रकार)
यह कितनी अजीब बात है कि भागाणा (हरियाणा) में गैंग रेप की शिकार हुई बालिकाओं के लिए दिल्ली में चल रहे आंदोलन का आज मीडिया ने घोषित रूप से वहिष्कार कर दिया।
जैसा कि आप जानते होंगे कि भगाना के लोग गैंग-रेप की शिकार हुई बालिकाओं के साथ पिछले 6 दिनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं। आज (22 अप्रैल, 2014) जेएनयू के सभी छात्र संगठनों के साथियों ने भगाणा के पीडितों को साथ लेकर हरियाणा भवन पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान आयोजित जन-सभा में एक साथी ने भगाणा प्रकरण को तवज्जो नहीं देने को लेकर मीडिया को ब्राह्मणवादी कहा। इस पर वहां खडे पत्रकारों ने आंदोलन के जातिवादी होने का आरोप लगाते हुए इसके वहिष्कार करने की घोषणा कर दी। उन्होंने आयोजकों का सबक सिखाने की धमकी दी तथा एक ओर गोल बनाकर खडे हो गये।
मैं नही समझता कि यह बताने की आवश्यकता है कि वास्तव में ऐसा क्यों हुआ।
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22 अप्रैल की दोपहर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ पत्रकारों ने हरियाणा भवन, दिल्ली पर भगणा बलात्कार पीडितों के प्रदर्शन का वहिष्कार कर दिया था। वहिष्कार करने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों के दफ्तर से उसी दिन शाम को आंदोलनकारियों को फोन आया कि वे आंदोलन का 'वहिष्कार' नहीं कर रहे। खबर दिखाएंगे। संभवत: उनका फैसला मीडिया संस्थानों में खूब पढे जाने वाले भडास फोर मीडिया व अन्य सोशल साइटस पर वहिषकर की खबर प्रसारित होने के कारण हुआ।
जानते हैं पिछले आठ दिनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना पर बैठे भागणा के लगभग 100 गरीब दलित परिवरों की इन महिलाओं, पुरूषों, बच्चों के साथ दिल्ली पहुंचने के पीछे क्या मनोविज्ञान रहा है? उन्हें लगता है कि यहां का मीडिया उनका दर्द सुनाएगा और दिल्ली उन्हें न्याय दिलाएगी। उन्होंने निर्भया कांड के बारे सुन रखा है। उन्हें लगा कि उनकी बच्चियां को भी दिल्ली पहुंचे बिना न्याय नहीं मिलेगा। यही कारण था कि वे अपनी किशोरावस्था को पार कर रही गैंग-रेप पीडित चारों लडकियों को साथ लेकर आए। अन्यथा चेहरा ढक कर घर से बाहर निकलने वाली इन महिलाओं को अपनी बेटियों की नुमाईश के कारण भारी मानसिक पीडा से गुजरना पड रहा है।
जानता हूं, ऊंची जातियों में पैदा हुए मेरे पत्रकार साथी एक बार फिर कहेंगे कि हमने तो उनकी खबर नहीं रोकी। इस आंदोलन में जितनी भीड थी, उसके अनुपात में उन्हें जगह तो दी ही।
लेकिन साथी! क्या आपका दायित्व इतना भर ही है? क्या खबर का स्पेस सिर्फ भीड और बिकने की क्षमता पर निर्भर करना चाहिए? क्या मीडिया का समाज के वंचित तबकों के प्रति कोई अतिरिक्त नैतिक दायित्व नहीं बनता? क्या अपनी छाती पर हाथ रख कर आप बताएंगे कि अन्ना आंदोलन के पहले ही दिन जो विराट देश व्यापी कवरेज आपने दिया था, उस दिन कितने लोग वहां मौजूद थे? क्या निर्भया की याद में कैंडिल जलाने वालों की संख्या कभी भी भगणा के आंदोलनकारियों से ज्यादा थी? वर्ष 2012 में तो इसी जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के आंदोलन के बगल में ही भगाना से वहिष्कृत ये दलित-पिछडे भी सैकडों की संख्या में धरना पर बैठे थे। लेकिन मीडिया ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। कहने की आवश्यकता नहीं कि अगर उस समय इन्हें मीडिया की पर्याप्त तवज्जो मिली होती तो कम से कम बलात्कार की यह घटना तो नहीं ही होती।
जब भगणा के आंदोलनकारियों को धरने पर बैठे चार दिन हो गये और आपने कोई कवरेज नहीं दी तो उन्हें लगा कि शायद निर्भया को न्याय जेएनयू के छात्र-छात्राओं के आंदोलन की वजह से मिला। वे 19 अप्रैल को जेएनयू पहुंचे और वहां के छात्र-छात्राओं से इस आंदोलन को अपने हाथ में लेने के लिए गिडडियाए। 22 अप्रैल को जेएनयू छात्र संघ (जेएनएसयू) ने अपने पारंपरिक तरीके के साथ जंतर-मंतर और हरियाणा भवन पर जोरदार प्रदर्शन किया। लेकिन क्या हुआ? कहां था 'आज तक', 'एवीपी न्यूज', 'एनडीटीवी'? सबको सूचना दी गयी, लेकिन पहुंचे सिर्फ हरियाणा के स्थानीय चैनल, और उन्होंने भी आंदोलन के वहिष्कार की घोषणा कर आंदोलनकारियों के मनोबल को तोडा ही।
साथी, चुनाव का मौसम है। हरियाणा में कांग्रेस की सरकार है। भगणा के चमार और कुम्हार जाति के लोग पिछले दो साल से जाटों द्वारा किये गये सामाजिक वहिष्कार के कारण अपने गांव से बाहर रहने को मजबूर हैं। धनुक जाति के लोगों ने वहिष्कार के बावजूद गांव नहीं छोडा था। यह चार बच्चियां, जिनमें दो तो सगी बहनें हैं, इन्हीं धुनक परिवारों की हैं, जिन्हें एक साथ उठा लिया गया तथा दो दिन तक लगभग एक दर्जन लोग इनके साथ गैंग-रेप करते रहे। यह सामाजिक वहिष्कार को नहीं मानने की खौफनाक सजा थी। 23 मार्च को हुए इस गैंग रेप की एफआईआर, धारा 164 का बयान, मेडिकल रिपोर्ट आदि सब मौजूद है। ऐसे में, क्या यह आपका दायित्व नहीं था कि आप कांग्रेस के बडे नेताओं से यह पूछते कि आपके राज में दलित-पिछडों के साथ यह क्या हो रहा है? किस दम पर आप दलित-पिछडों का वोट मांग रहे हैं? आप मोदी के 'पिछडावाद' की लहर पर सवार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की बाइट लेते कि पिछले चार-पांच सालों से हरियाणा से दलित और पिछडी लडकियों के रेप की खबरें लगातार आ रही हैं लेकिन इसके बावजूद आपकी राजनीति सिर्फ जाटों के तुष्टिकरण पर ही क्यों टिकी हुईं हैं? आप अरविंद केजरीवाल से पूछते कि भाई, अब तो बताओ कौन है आपकी नजर में आम आदमी? अरविंद केजरीवाल तो उसी हिसार जिले के हैं, जहां यह भगाणा और मिर्चपुर गांव है। लेकिन क्या आपने कभी 'आम आदमी पार्टी' को हरियाणा के दलितों से लिए आवाज उठाते देखा। जबकि उनके हरियाणा के मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार योगेंद्र यादव यह कहते नहीं थकते कि दिल्ली में उन्हीं सीटों पर उनकी पार्टी को सबसे अधिक वोट मिले जहां गरीबों, दलितों और पिछडों की आबादी थी। आप क्यों नहीं उनसे पूछते कि दलित-पिछडों के वोटों का क्या यही इनाम आप दे रहे हैं? बात-बात पर आंदोलन करने वाला दिल्ली का आपका कोई भी विधायक क्यों जंतर-मंतर नहीं जा रहा? क्यों आपने महान प्रोफेसर आनंद कुमार ने जेएनयू में 19 अप्रैल को इन लडकियों को न्याय दिलाने के लिए बुलायी गयी सभा में शिरकत नहीं की, जबकि उन्हें बुलाया गया था और वे वहीं थे।
साथी, अब भी समय है। भगणा की दलित बच्चियां जंतर-मंतर पर अब भी आपकी राह देख रही हैं।
Anil Kumar | Student of Life World
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