Lecture and Explanation of Reading to be covered:
Becker, Howard S. ‘Visual Sociology, Documentary Photography and Photojournalism: It’s (Almost) All a Matter of Context’ in Image-Based Research: A Sourcebook for Qualitative Researchers, Jon Prosser ed., Falmer Press, pp. 74-85
Keywords: Visual Sociology, Documentary Photography and Videography, Photo Journalism, Context of the Photo and Video,
Paper: Society Through the Visuals
Course: BA Programme, Skill Enhancement Course 03
University of Delhi
<< INSERT THE PICTURE>>
हिंदी में नोट्स (प्रमुख बिंदु)
Unit 2. Sociology and the Practice of Photography
Sub-unit/ Article 2.2
Course Structure
#1 Important Points to be kept in Mind While Studying the Content
#2 Expected Outcome and Understanding of the Content
#3 General Introduction
#4 Lecture in Detail with Comment, Clarification, and Explanation
फोटोग्राफी तीन तरह के होते हैं-
१) विजुअल सोसिओलॉजिस्ट (विजुअल समाजशास्त्री),
२) डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफी और
३) फोटोजौर्नालिस्ट.
ये तीनो कई मामलों में एक हैं और कुछ मामलों में ये एक दुसरे से अलग भी हैं. तीनो में समानता यह है कि तीनो में ही फोटो लिए जातें हैं लेकिन तीनो के उद्देश्य अलग-अलग हैं.
विजुअल सोसिओलॉजिस्ट (विजुअल समाजशास्त्री) का उद्देश्य वर्तमान सामाजिक संबंधों, सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक तथ्यों का अध्ययन है. इसमें संस्कृति, परिवार, धर्म, सामाजिक सम्बन्ध आदि आते हैं.
डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफी का उद्देश्य किसी विषय से संबंधित तथ्यों को इकट्ठा करना है. और
फोटो जौर्नालिस्ट का उद्देश्य समाचार से संबंधित है.
लेकिन तीनो ही तरह के फोटोग्राफी एक दुसरे के भी काम आते हैं, और कई बार यह अंतर करना मुश्किल होता है कि किसी फोटो विशेष को किस कैटेगरी में रखा जाए? कई बार फोटो जौर्नालिस्ट के द्वारा लिया गया फोटो बाद में डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफी बन जाती है, तो कभी विजुअल सोसिओलॉजिस्ट के काम आ जाती है. भले ही वह उसका प्रारंभिक उद्देश्य न रहा हो. तीनो के बिच कोई बहुत ज्यादा ठोस अंतर नहीं है, लेकिन प्राथमिक उद्देश्य अलग-अलग है.
सामाजिक विज्ञान के अध्ययन से संबंधित फोटोग्राफी मटेरियल को विसुअल सोशियोलॉजी कहतें हैं लेकिन इसे कभी कभी फोटो जौर्नालिस्ट और डाक्यूमेंट्री भी भ्रमवश समझ लिया जाता है.
पेंटिंग और फोटोग्राफ का उद्देश्य और अर्थ उनके बनाने वाले, रखने वाले या संग्रहालय में दिए गए डिस्क्रिप्शन से पता चलता है. क्योकि उसका असली उद्देश्य उसे बनाने वाला ही जनता है या फिर वह बेहतर जनता है.
इन सभी फोटो का कम-से-कम दो उद्देश्य है. (१) संस्थानिक / organisational और (२) ऐतिहासिक / Historical
फोटो के संस्थानिक उद्देश्य - जब कोई व्यक्ति फोटो लेता है तो उसका कोई उद्देश्य होता है और वह फोटो को कोई एक नाम भी देता है. लेकिन कई बार सवाल उठता है कि उसी आधार पर हम दुसरे चीजों को कैसे देखें? उदहारण के लिए कोई व्यक्ति अफीम के नशे के लत में फंसा हुए व्यक्ति का फोटो खीच कर कह सकता है कि अमुक व्यक्ति नशा करता है लेकिन नशा तो सिगरेट और शराब में भी है. तो क्या सिगरेट और शराब का नशा किसी अच्छे काम के लिए है? नशा तो नशा नशा है. लेकिन संस्थानिक रूप से इसका विरोध सामान्यतः नहीं किया जाता है. तो सवाल उठता है कि फिर फोटो का उद्देश्य क्या है? क्योंकि नशा तो दोनों में है और एक नशे को दूसरे नशे से अच्छा नहीं कह सकते हैं.
फोटो के ऐतिहासिक उद्देश्य- डाक्यूमेंट्री फोटो लेने का पुराना इतिहास रहा है. लेकिन समय समय पर जौर्नालिस्ट भी अपने उद्देश्य के अनुसार फोटो लेते रहते हैं. यह दोनों ही प्रकार के फोटो कालांतर में विजुअल समाजशास्त्री या विजुअल स्टडी के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं. दोनों ही प्रकार के फोटो समाज को समझने में हमें मदद करते हैं. अगर आज हमें बीते दौर को समझाना हो या कल के समाज और आज के समाज में कितना परिवर्तन हुआ क्या बदलाव हुआ तो हमें पुराने डाक्यूमेंट्री और जौर्नालिस्ट फोटो की मदद लेनी होगी. इसके अलावा हमारे पास कोई और रास्ता भी नहीं है.
लेकिन यहां एक समस्या यह है कि जौर्नालिस्ट फोटो मुख्यतः समाचार पत्रों के लिए और वीडियो टीवी के लिए लिए जाते हैं. जो हो सकता है कि पूरा सच न दिखाते हों. क्योकि समाचार के व्यापर में आगजनी, हत्या या अन्य अपराधिक समाचारों को ज्यादा पढ़ा जाता है और वही ज्यादा पब्लिश भी होता है. एक फोटो जौर्नालिस्ट कहता भी है कि “हत्या और आगजनी मेरे दो सबसे ज्यादा बिकने वाले कार्य हैं और यह मेरे रोजी रोटी का साधन भी है.” अर्थात फोटो जौर्नालिस्ट जो काम कर रहा है वह व्यापार और रोजी के लिए कर रहा है. वह वही दिखा रहा है जिसके लिए उसे सबसे ज्यादा पैसे मिलेंगे.
यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि फोटोग्राफर वही फोटो लेता है जिसके लिए उसे कहा जाता है. अर्थात फोटो जौर्नालिस्ट किसी समाचार एजेंसी का कर्मचारी होता है. वह वही करता है जो उसे करने के लिए कहा जाता है. साथ ही संवाददाता/ reporter के कार्य को संपादक/ editor अपने तरीके से से प्रकाशित कर सकता है. इस तरह फोटो पर उसका नियंत्रण बहुत कम होता है. नियंत्रण या तो बाजार का होता है या फिर नियोक्ता/ employer का, साथ ही संपादक/ editor का भी रोल महत्वपूर्ण होता है.
लेकिन अगर हमें आज बीते समाज का अध्ययन करना हो तो हमारे पास इसके अलावा और कोई साधन भी नहीं है. इसलिए हमें डाक्यूमेंट्री और जौर्नालिस्ट फोटो का सहारा लेना होता है. क्योंकि विजुअल का एक अपना ही महत्व होता है.
सन्दर्भ/ COntext
किसी भी अन्य सांस्कृतिक वास्तु की ही तरह फोटो का अर्थ भी उसके संदर्भ से निर्धारित होता है. यहाँ तक कि पेंटिंग और मूर्ति का अर्थ भी उसके संदर्भ से निर्धारित होता है. चाहे वह घर में हो या संग्रहालय (म्यूजियम/ museum) में. इसका अर्थ उनके बनाने वाले से निर्धारित होता है. इसी तरह से फोटो का सन्दर्भ और अर्थ उनके खींचने वाले से निर्धारित होता है कि उसे कसी सन्दर्भ में और किन परिस्थितियों में खींचा गया था. लेकिन इन सब बातों के होते हुए भी बाद में समाज उनके बनाने वाले/ खींचने वाले से इतर विश्लेषण करने के लिए स्वतंत्र होता है।
आग्रह: कुछेक जगहों पर हिंदी टाइपिंग में कुछ अशुद्धियाँ हो सकती हैं, कृपया उसे इग्नोर करें.
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